Friday, September 25, 2009

क्यू वो है इतनी दूर.....

क्यों बहुत दूर थे वो?


सोचा करती थी बचपन में,

अपनी मुट्ठी में समां लू उनको,

खेलू उनसे मै तो जी भरके,

छिपा लू उन्हें अपने खिलोनो में,


पर दूर बहुत दूर थे वो,



चाहा था उनके रंग चुराकर,

भर
लू उन्हें अपने सपनो में,

उन
पर बनी कितनी लकीरों से,

आकार दू अपनी भावनाओं को,



पर दूर बहुत दूर थे वो,



ईश्वर ने जो सुन्दरता दी उनको,

वो छीनकर उनसे आकाश सजाऊ,

छत से उछल-२ कर देखा उन्हें,

उतनी ही सुंदर अपनी दुनिया बनाऊ,


पर दूर बहुत दूर थे वो,


रात होते ही आकाश के सितारे,

जो उन पर उतर आते है,

उन्हें अंधेरे में उनसे चुराकर,

अपने केशो में सजा लू,


पर दूर बहुत दूर थे वो,


कह दे कोई उन पहाडो से जाकर,

जो
इतनी दूर खड़े है है डर कर,

पास वो आए पुरी करे आशाये,

पर कौन कहता उनसे जाकर,



क्यूंकि दूर बहुत दूर थे वो.............

2 comments:

  1. बहुत भाव पूर्ण रचना है...

    "रात होते ही आकाश के सितारे,
    जो उन पर उतर आते है,
    उन्हें अंधेरे में उनसे चुराकर,
    अपने केशो में सजा लू,
    पर दूर बहुत दूर थे वो"

    यह पंक्तियाँ दिल को छू गयी है....
    सुन्दर रचना क लिए बधाई......

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