Wednesday, September 30, 2009

शायरी

"आसमां बस गया है यू आँखों में,
जैसे दुनिया हो बंद सलाखो में,
बरसे क्या ये नैनो के काले बादल,
ढून्ड़ते खुशी के निशाँ राखों में "

रुख

कमरे की हवा आज बदली है फ़िर,
आकर मेरे पास से मुड जाती है,

जाने क्या पैगाम है कोई जो,
सनम के जानिब देने मुझे आती है,

बैचैनी का आलम बढ़ा ही जाता,
यादो की किताब बारहा खुल जाती है,

आग जो बुझी सी थी दबी दिल में,
हवा पास आके भड़का उसे जाती है,

सनम सोये होगे इसी हवा के पहलु में,
फ़िर क्यू आके बस मुझे ही तरसाती है...

Tuesday, September 29, 2009

गृहणी रिश्ते....

मेरी ज़िन्दगी का ग्रहण
ये रिश्ते,
इनके दिए जख्मो से
दुःख - दर्द अब रिसते
रिश्तो के भंवर में फ़सी,
ज़िन्दगी अब पुकारती है
मुझ को
" इसकी आग में
आहुति दे ख़ुद को"
संकरी गलियों से
गुजारी तंग जिंदगी,
खुले मैदान में
लहराना चाहती है अब,
पर जन्म से इन
गलियो का जाल चुना,
निभाते - वो तो
गले का जंजाल बना,
इसी जाल में फ़सी जिंदगी है,
अब तो ये
जाल ही जिंदगी है,
हर कोई ही तो
अपना मान चाहता है,
पर हम दे क्या,
हमारा कुछ है ही कहा,
जो हर कोई मांगता है,
अब ये जाल
बढती की जकडन,
भिचने लगी है
मेरी हर धड़कन,
देती है थकावट क्या करे?
क्यू चलके अब
सदा का आराम करे.....

Sunday, September 27, 2009

तुम्हारा साथ

काश तुम पास मेरे जाते,
जीवन के मेरे भेद समझ पाते,

आँखे क्यू सूनी तकती यहाँ वहां,
धुन्दती हमेशा कि तुम हो कहा ,
रवि, चन्द्र भी इन सम्मुख फीका पाते,

काश तुम पास मेरे जाते,
जीवन के मेरे भेद समझ पाते,

रंगत क्यू ढलती सी लगती,
गए दूर जब से मुरझाया करती,
खिले फूलों सी जब तुम छु जाते,

काश तुम पास मेरे जाते,
जीवन के मेरे भेद समझ पाते,

Saturday, September 26, 2009

कविता की चाह


काश मै कवियत्री होती,
किसी
का दर्द तो समझती,
समझती
दुःख क्या है,
दुःख का अंत क्या है,
काश
भावनाए
जो
मुझमे होती,
पत्थारों
के भी आँसुओ
का
कारण समझ पाती,
पर
शायद ऐसा बनाना
मुश्किल
बहुत है,
आज
की हवाओं
का ही ये असर है,
इतने
लोग रोज मारे जाते पर,
अमीर
महलों में जशन मनाते, "
अर्थ
" देने को तो
नदियाँ
भी है सूखती,
सडको
पर खून की
नदिया
अब है बहती,
पर
कारवाँ आंखे बंद कर
बस
चलता रहता,
आपस
ही छुपे राज़,
कही कोई कुछ कहता,
दिल कहाँ है, अब जो तडपे,
मशीने
अब तो यहाँ है,
कोई
कवि नही
जो
अहसास करे,
इंसानों
का नही
नर
कंकालो का बाज़ार
है
हर कही ही,
मै भी नही समझी
जो
कोई समझता,
लिख
पाती कोई कविता,
जो
शायद भावना संचार करती
उन
पत्थरों में जो सो चुके है कब से......

राह

जिंदगी कहाँ आकर रुकी,

कुछ भी समझ नही आता,

हर जगह अँधेरा ही अँधेरा है,

कहा जाऊ कोई नही बताता,

एक ऐसे दर्रे पर फसं,

कोई रास्ता नजर नही आता,

क्या करूँ, क्या ना करू,

हमेशा यही ख्याल ही है सताता,

हर जगह, हर कही ढूंडा उसे,

पर वो अपनापन कोई नही जताता....

Friday, September 25, 2009

ज़िन्दगी........

जिंदगी आख़िर क्या है ये ज़िन्दगी,

कभी समझ पायी हू मै

एक - एक लम्हा जिसका गुजर रहा,

क्या वो वक्त, एक घड़ी है ज़िन्दगी,

दुःख दर्द जिसमे सहा हसकर,

क्या वो एक अनुभव है ज़िन्दगी,

लोग कहते है एक गीत है ये,

हसके गाओ बस ये ज़िन्दगी,

कुछ कहते बककर है जीना,

पर उन्हें नही पता मुश्किल से मिलती है ऐसी है जिंदगी.....................

क्यू वो है इतनी दूर.....

क्यों बहुत दूर थे वो?


सोचा करती थी बचपन में,

अपनी मुट्ठी में समां लू उनको,

खेलू उनसे मै तो जी भरके,

छिपा लू उन्हें अपने खिलोनो में,


पर दूर बहुत दूर थे वो,



चाहा था उनके रंग चुराकर,

भर
लू उन्हें अपने सपनो में,

उन
पर बनी कितनी लकीरों से,

आकार दू अपनी भावनाओं को,



पर दूर बहुत दूर थे वो,



ईश्वर ने जो सुन्दरता दी उनको,

वो छीनकर उनसे आकाश सजाऊ,

छत से उछल-२ कर देखा उन्हें,

उतनी ही सुंदर अपनी दुनिया बनाऊ,


पर दूर बहुत दूर थे वो,


रात होते ही आकाश के सितारे,

जो उन पर उतर आते है,

उन्हें अंधेरे में उनसे चुराकर,

अपने केशो में सजा लू,


पर दूर बहुत दूर थे वो,


कह दे कोई उन पहाडो से जाकर,

जो
इतनी दूर खड़े है है डर कर,

पास वो आए पुरी करे आशाये,

पर कौन कहता उनसे जाकर,



क्यूंकि दूर बहुत दूर थे वो.............

मेरी कमी सताए तो आना

जब मेरी कमी सताए तो आना,
हर दुःख में अपने पास मुझे पाना,


फूलो की बगिया हर दिल को भाए,
चार दिन बस, फ़िर है मुरझाना,
आराम चाहो जब अपने मन का,
कड़वी नीम की छावं में आना,


जब मेरी कमी सताए तो आना.......................

पोर सुबह में अच्छी लगती धूप,
पर कुछ में है उसने ढल जाना,
ढूनडने पर न मिले जो जलस्त्रोत्र,
उस पोखर से ही प्यास बुझाना,


जब मेरी कमी सताए तो आना.......................