जिंदगी कहाँ आकर रुकी,
कुछ भी समझ नही आता,
हर जगह अँधेरा ही अँधेरा है,
कहा जाऊ कोई नही बताता,
एक ऐसे दर्रे पर आ फसं,
कोई रास्ता नजर नही आता,
क्या करूँ, क्या ना करू,
हमेशा यही ख्याल ही है सताता,
हर जगह, हर कही ढूंडा उसे,
पर वो अपनापन कोई नही जताता....
Saturday, September 26, 2009
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