
इतने दिनों से जिस कमरे में तन्हा रहती थी,
हर ख़ुशी गम को तन्हा अपना कर जी भी रही थी
अज कोई मेरे कमरे की एक ईंट गिरा गया,
जाने कौन था जो चुपके से मेरे कमरे में आ गया
वो यादे जो उस कमरे की दीवारों में सजी थी,
कोई दिल की उन सब तस्वीरो को हिला गया,
मेरे बिस्तर पर वो सब ख्वाब जो मेरे साथी थे,
मेरे ज़ज्बातो के बिछोने को छितर कर गया।
मेरा अहंकार कि तन्हाई में ख़ुशी से जीती थी,
कोई मेरी खामोशियो की हवा खिड़की से भेज दी
वो जो आके सब तितर बितर कर चला भी गया,
मै हू अब तक अनजान अजनबी कौन था
जो मुझसे मेरे रातो के चाँद तारे चुरा ले गया।
सुकून के पोखर में रंगीले कमल खिला गया.
वो जो आया था भी तो रूक क्यू नहीं गया।
जाते जाते मेरे सपने के फूल तोड़ न जाता।
तेरे जाने के बाद से अब ये अपना सा नहीं रहा
ऐ अजनबी क्यू तू मेरे गाह में यू आ के चला गया
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
ReplyDeleteShukriya Sanjay JI..........
ReplyDeleteman ke taron ko jhankrit kar diya Seema,
ReplyDeletebahut Khoobsoorat likha hai
nishabad.............
ReplyDeleteTaarif ka shukriya
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