Tuesday, April 20, 2010

मौसम की पहली बारिश


अहा! ये छप - छप सुनके मन
होने लगा यू प्रसन्न
मौसम की पहली बरखा आई
चेते थे जिसे कब से सारे जन
भोर होगी निराली ही
धुला होगा हर पत्ता - फूल
खिला होगा हरेक कण
मिट जाएगी लू की तपिश
शायद जाए मेरे क्रोध की गर्मी
जो भरे है मेरे मन
पक्षी करते होगे कुम्भ स्नान
कैसे सौभाग्यशाली
गंगा स्वयं आई उनके स्थान
हर कोना भीगा होगा
सूखा रहेगा कुछ भी
मुझ जैसे किसी और ने भी
किया होगा भीगने का जतन..


3 comments:

  1. अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....

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  2. seema ji apka likha har ek sabd gehre bhav parkat karta hai...

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  3. shukriya ji, par lagta hai ki kuch baate hai jo mai shabdo me baandh bhi nahi paati hu.

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