Tuesday, April 27, 2010

आपबीती


कह देती की मजे में बीत रही
है ये ज़िन्दगी मेरी
कैसे कहूँ की वक़्त काट रही।
हर मौसम कब आता जाता
नहीं होता अहसास
बताऊं क्या, कैसे बरखा भीगा रही।
आँखे बंद करू तो भी मुझे
रास्ता पहचान जाता
जाने कैसे मोड़ ज़िन्दगी दिखा रही।
अनजाने चेहरे भी भी अब तो
पहचाने लगते है
फिर क्यू अपनों की ही पहचान नहीं।
झोली हर दम भरी रहती
देने को प्रेम
क्यू किसी की इसे पाने में ललक नहीं।
हर किसी को मिली है जो
उसकी जगह हमेशा
मेरे दिल को भी मिलेगी छाया कही।
सागर से जा मिलती है
जब हर नदी
मिलेगी धारा आँसुओ की बही।
मतलब निकालते है लोग
जो मेरी बातों का
कोई तो सुनाता मेरे दिल की कही.........



3 comments:

  1. जब हर नदी
    मिलेगी धारा आँसुओ की बही।
    मतलब निकालते है लोग
    जो मेरी बातों का
    कोई तो सुनाता मेरे दिल की कही........


    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  2. Ye zazbaat hai ji Sanjay ji jeene ko prerit karte hai, shukriya

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  3. आँखे बंद करू तो भी मुझे
    रास्ता पहचान जाता
    जाने कैसे मोड़ ज़िन्दगी दिखा रही।
    अनजाने चेहरे भी भी अब तो
    पहचाने लगते है
    फिर क्यू अपनों की ही पहचान नहीं।


    हर किसी को मिली है जो
    उसकी जगह हमेशा
    मेरे दिल को भी मिलेगी छाया कही

    ye panktiyaan achhi rahi, dard hai............hame chaya kab milegi ham bhi nahi jaante..........

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