Friday, April 16, 2010

ग़मज़दा तन्हाई


दिल में कुछ घटता सा जा रहा ,

जब कोई हमसे मिलने आ जा रहा।


क्यों मिलके कोई दे जाता है गम,

जब ज़ख्म पिछला हो ताज़ा रहा।


जाने क्यू हो जाती है आँखे नाम,

क्या है जो कतरा कर बह जा रहा।


चाहत है भूल जाने की दुनिया को,

याद रखना इसे तो है सजा रहा.


तुम
जो चाहोगे तो मर भी जाएँगे,

अब तो मरना भी एक मज़ा सा रहा,


दूर रहते है वो, न हमे चाहते है,

फिर मिलना क्यू उन्हें भाता रहा।


संजीदा बन दिया उन्होंने हमे भी,

मेरी चुपी का क्यू उन्हें तकाज़ा रहा.....

2 comments:

  1. एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

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  2. seema ji ek se badh kar ek rachnaye

    maja aa gaya

    plz vist me blog

    संजय कुमार
    हरियाणा
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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