Tuesday, April 13, 2010

मेरे रात के साथी


रात तारों से बतियाने का मौका मिल आया,
हर एक के हालात जानने का समाँ आया

मेरी तन्हाई में जो इकट्ठे शरीक हो आये थे,
उन्हें हाल--दिल अपना दिखाना रास आया

वो समझे थे दिल की काली रात घिरी जो है,
शायद उनके पहलू में अँधेरे का छटे साया

कहने लगे हर आंसू यू ही नहीं बह जाता,
सब सज के रात के दामन में हुए बेजाया

उनके होते भी दिल में सन्नाटा बिसरा रहा,
जान कर उन्होंने अधूरे चाँद को भी बुलाया

कोशिशे करते रहे रातभर वो मेरे ग़मज़दा,
पर रुकते कहा थे अश्क होने लगे थे बेहया

अब उन्हें कितने ज़ख्मी दिल के दाग दिखाती,
पास जाके देखा जब उन्हें भी तन्हा ही पाया

ये अकेले होने का गम शायद अब हो कभी,
होगे ये अपने तो जब ये ज़माना होगा पराया.








6 comments:

  1. ये अकेले होने का गम शायद अब न हो कभी,
    होगे ये अपने तो जब ये ज़माना होगा पराया.

    अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....

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  2. waah.....its really touching :)

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  3. Really, very nice lines.........


    'dil ki udaasi ka saaf nazara hai,
    na jaane kis ko in ashko ne pukara hai...
    hame to garur tha apni dosti ka bahut,
    magar kitna tanha ye dost hamara hai....'


    bahut acha lga tumhe dobara padh kar....

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  4. Ap sabhi ka tahe dil se shukriya prerit karne ke liye

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