Wednesday, October 14, 2009

मापदंड


सुमध्या और मर्यादा की गृह्कथा,
है बिल्कुल विपरीत,
दोनों ने जन्म मापदंड,
लिया भिन्न - भिन्न खींच,
सुमध्या के घर फूल खिला,
खिले हर्षौल्लास के दीप,
मर्यादा के घर जो कली खिले,
खिलते सन्ग दबे पैरो के तले,
सुमध्या को जो लगे वर,
वही लगे मर्यादा को श्राप,
जैसे नन्ही कली ने किया हो पाप
मर्यादा के उपजा जो पुष्प,
संग लाया है कंटक सार,
उतरा फूल जो सुमध्या गोद,
भाग्य सबका दिया निखार,
जीवन का यह मापदंड बन आया है,
विधाता भी समझ पाया है,

5 comments:

  1. सुन्दर एवम प्रवाहमयी रचना----
    पूनम

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  2. बहुत सुन्दर लिखा है सीमा जी,

    "सुमध्या के घर फूल खिला,
    खिले हर्षौल्लास के दीप,
    मर्यादा के घर जो कली खिले,
    खिलते सन्ग दबे पैरो के तले,"

    इन पंक्तियों में यथार्थ का चित्रण काफी सही दर्शाया है आपने..

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  3. सुमध्या को जो लगे वर,
    वही लगे मर्यादा को श्राप,
    जैसे नन्ही कली ने किया हो पाप
    मर्यादा के घर उपजा जो पुष्प,
    संग लाया है कंटक सार,

    गहरे भाव हैं आपकी कविता में ....!!

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