वक़्त के झोले में दूंदते कुछ यादे हाथ आई,
कितनी ही पुरानी और कब से भूली भुलाई।
जाने कब स कोने में पड़ी थी गर्द में सब,
जीने की जद्दोजहद में कब धुल में समाई।
परख कर देखा तो धुन्ध्लकी सी लगी,
अपने असली रंग जाने कब से गवाई।
कुछ के रंग खुशनुमा से थे अभी भी,
जाने कितनी हंसी में थी वो तब रंगाई।
वो पल जब जिये थे ज़िन्दगी सी थी,
आज झोला भरने में जो मैंने गंवाई।
कुछ यादे सिंदूरी सी थी आज भी अपनी,
कितनी साँझों की सैर करके जो जुटायी।
एक बारगी साँसों में सौंधी खुशबु भर गयी,
निकाल कर देखा प्यार की सुखी कली पायी।
कभी उन्ही ताज़ा फूलो को पाने की खातिर,
मेरे लिए कभी दुनिया भी हुई थी पराई।
तजुर्बे के कागजों में लिपटी मिली कुछ,
किसी ने कई दिन मरहम थी पकड़ाई।
जुदाई के आँसुओ से स्याह भी काफी थी,
जो मैंने उस ढेर में ऊपर ही थी लगाई।
तन्हाई के नामे की तो कई परतें दिखी,
जिनसे हर तरफ कई सी जम आई।
कुछ डर और दर्द की स्याही लगी दिखी,
तन्हा रहने से बचने को उनमे कभी डुबाई।
ऐसे जाने कितनी वहाँ से निकलती रही,
आज जो मैंने आपको भीगी पलकों से पढाई.
कितनी ही पुरानी और कब से भूली भुलाई।
जाने कब स कोने में पड़ी थी गर्द में सब,
जीने की जद्दोजहद में कब धुल में समाई।
परख कर देखा तो धुन्ध्लकी सी लगी,
अपने असली रंग जाने कब से गवाई।
कुछ के रंग खुशनुमा से थे अभी भी,
जाने कितनी हंसी में थी वो तब रंगाई।
वो पल जब जिये थे ज़िन्दगी सी थी,
आज झोला भरने में जो मैंने गंवाई।
कुछ यादे सिंदूरी सी थी आज भी अपनी,
कितनी साँझों की सैर करके जो जुटायी।
एक बारगी साँसों में सौंधी खुशबु भर गयी,
निकाल कर देखा प्यार की सुखी कली पायी।
कभी उन्ही ताज़ा फूलो को पाने की खातिर,
मेरे लिए कभी दुनिया भी हुई थी पराई।
तजुर्बे के कागजों में लिपटी मिली कुछ,
किसी ने कई दिन मरहम थी पकड़ाई।
जुदाई के आँसुओ से स्याह भी काफी थी,
जो मैंने उस ढेर में ऊपर ही थी लगाई।
तन्हाई के नामे की तो कई परतें दिखी,
जिनसे हर तरफ कई सी जम आई।
कुछ डर और दर्द की स्याही लगी दिखी,
तन्हा रहने से बचने को उनमे कभी डुबाई।
ऐसे जाने कितनी वहाँ से निकलती रही,
आज जो मैंने आपको भीगी पलकों से पढाई.
सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteaap rachnaye pad kar dil ko sukun miltahai maine to aapko follow kar liya hai
ReplyDeleteShukriya Sanjay ji......
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
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